देवी शैलपुत्री पूजा से शांत होते हैं कुंडली के दोष, जानें शैलपुत्री मंत्र, कथा और महत्व

Pachangam
6 min readSep 20, 2024

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devi shailputri

या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

देवी दुर्गा के नौ रुपों में पहला रुप शैल पुत्री का माना गया है. नवरात्री के दौरान माता शैल पुत्री की पूजा का विशेष विधान रहता है. नवरात्रि पूजन के अलावा भी भक्त किसी भी दिन देवी शैल पुत्री की पूजा भक्ति भाव के साथ करते हुए देवी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. देवी शैलपुत्री की साधना भक्त को जीवन में सुख समृद्धि के साथ साथ आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान करती है. नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री पूजा का विधान विशेष होता है तो चलिये जान लेते हैं कैसे करें देवी की पूजा और शक्ति का यह स्वरुप कैसे देता है भक्ति को नित नए रंग.

शैलपुत्री चैत्र नवरात्रि के पहले दिन की पूजा

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी । तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ॥

नवरात्रि का आरंभ शैल पुत्री के पूजन से आरंभ होता है. शास्त्रों के अनुसार देवी दुर्गा के नौ अवतारों की पूजा करने से भक्त की चेतना और उसकी मानसिकता को प्रकाश मिलता है. यही प्रकाश जीवन को आनंद एवं सुखद अनुभूति देने वाला होता है. नवरात्रि प्रथम दिन में घटस्थापना के साथ देवी शैलपुत्री का आहवान किया जाता है.

देवी शैलपुत्री स्वरुप

दुर्गा सप्तशती अनुसार देवी शैल पुत्री का स्वरुप भक्त को धैर्य एवं शक्ति प्रदान करने वाला होता है. देवी को वृषभ पर विराजमान दिखाया गया है, माता शैलपुत्री अपने बाएं हाथ में कमल का पुष्प धारण किए हैं और दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए है. देवी शैल पुत्री के के माथे पर आधा चंद्रमा सुशोभित है. शैलपुत्री शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, “शैल” एवं “पुत्री” देवी दुर्गा के इस अवतार का जन्म शैलराज अर्थात हिमालय के घर पर हुआ था अत: इसी कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया.

देवी शैल पुत्री कथा

देवी के विभिन्न रुपों की कथा का संबंध पुराणों में एक विशेष कथा से जुड़ा माना गया है. इन्हीं कथाओं में एक कथा देवी शैलपुत्री के संदर्भ में प्राप्त होती है पौराणिक कथा अनुसार देवी शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति राजा दक्ष की पुत्री देवी सती थीं और देवी का विवाह भगवान शिव से हुआ था किंतु दक्ष के मन में भगवान शिव से विरोध व द्वेष की भावना थी जिसके कारण, एक बार प्रजापति दक्ष ने जब महायज्ञ आयोजित किया, और उस आयोजन में समस्त देवी देवताओं को तो आमंत्रित किया किंतु अपनी पुत्री सती और भगवान शिव को नहीं बुलाया. किंतु देवी सती भगवान शिव की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता के यज्ञ में गईं, जहां उन्हें बुरी तरह अपमानित होना पड़ा और जब अपने पति का अपमान वह सहन न कर पाईं तो उसी यज्ञ की अग्नि में स्वयं को भस्म कर लिया. इस घटना के पश्चात ही देवी सती ने पुन: देवी पार्वती के रूप में हिमालय के राजा के घर जन्म लिया.

देवी शैलपुत्री पूजा मुहूर्त : कब की जाती है देवी शैल पुत्री की पूजा

देवी शैल पुत्री की पूजा भक्त जब चाहे कर सकते हैं किंतु कुछ विशेष समय भी होते हैं जब देवी शैल पुत्री पूजन करना महत्वपूर्ण फलों को देने वाला होता है. देवी पूजन को साल के चार नवरात्रों के दौरान करना शुभ फलदायी होता है. इन चार नवरात्रि में देवी पूजा की विशेष तिथि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि होती है. देवी शैल पुत्री का पूजन माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन,चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि देवी शैल पुत्री के पूजन के लिए उत्तम समय होता है. इन सभी हिंदू माह और तिथि के दौरान नवरात्रि पूजा आरंभ होती है और इस समय को देवि शैल पुत्री की पूजा के लिए विशेष शुभ समय माना जाता है.

शैलपुत्री पूजा वस्त्र, शुभ रंग एवं भोग

माँ शैलपुत्री/shailputri mata पूजा में साधक को श्वेत वस्त्र एवं हलके गुलाबी वस्त्र माता को अर्पित करने चाहिए. माँ शैलपुत्री को सफ़ेद फूलों की माला अर्पित करना बहुत ही विशेष माना जाता है.

देवी शैल पुत्री पूजा में भोग हेतु विशेष रुप से श्वेत अर्थात सफ़ेद मिष्ठान एवं खाद्य सामग्री को उपयोग में लाना उत्तम माना गया है. देवी के भोग में खीर, पताशे, मिश्री, नारियल को शामिल करना चाहिए.

शैल पुत्री साधना से जागृत होता है “मूलाधार चक्र”

देवी शैल पुत्री की साधना को भक्ति और आध्यात्मिक जागृति का आधार माना गया है. देवी शैल पुत्री के पूजन से भक्त का प्रथम चक्र जिसे मूलाधार चक्र के नाम से जाना जाता है, जागृत होता है. शरीर में मौजूद सातों चक्रों को संतुलित करने में देवी आशीर्वाद प्रदान करती हैं. कुंडलिनी जागरण हेतु देवी शैलपुत्री की साधना उत्तम मानी गई है. मूलाधार चक्र से संबंधित हर प्रकार की समस्या का समाधान देवी पूजन से संभव होता है. मूलाधार चक्र की शुद्धि हेतु देवी शैल पुत्री साधना अनुकूल फल प्रदान करती है.

देवी शैलपुत्र : मंगल और चंद्र ग्रह शांति

शास्त्रों के अनुसार देवी शैल पुत्री को चंद्रमा के साथ विशेष रुप से जोड़ा गया है. मात की छवि में अर्ध चंद्र शोभायमान होता है. इस के अलावा मंगल ग्रह भी देवी पूजा से शुभ होता है. ज्योतिष शास्त्रों में देवी पूजन द्वारा नव ग्रहों की शुभता का वर्णन प्राप्त होता है. अत: शैलपुत्री माता की पूजा द्वारा चंद्र दोष एवं मंगल दोष शांत होते हैं. यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा किसी कारण से पीड़ित है अथवा मंगल पीड़ित है, मांगलिक दोष बन रहा है या फिर अन्य प्रकार के अशुभ प्रभाव इन ग्रहों के कारण मिल रहे हैं तो ऎसे में देवी शैल पुत्री की पूजा द्वारा इन सभी ग्रह दोष की शांति संभव होती है.

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शैलपुत्री पूजन से बनते हैं शीघ्र विवाह योग

शैलपुत्री माता के पूजन से विवाह योग का सुख प्राप्त होता है. ज्योतिष अनुसार यदि जन्म कुंडली में किसी कारण से सातवां भाव निर्बल है या फिर सप्तम भाव पर पाप ग्रहों का असर बना हुआ तो इसके कारण विवाह सुख बाधित होता है. विवाह योग के निर्बल होने के कारण कई बार विवाह होने में देरी अथवा विवाह होने के पश्चात परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस प्रकार की समस्या से बचने हेतु देवी के प्रथम स्वरुप शैलपुत्री का पूजन शीघ्र विवाह के योग बनाता है | विवाह में हो रही देरी से बचने के लिए ज्योतिषीय उपाय | | देवी की पूजा, मंत्र जाप एवं आध्यात्मिक साधना द्वारा व्यक्ति जन्म कुंडली में दांपत्य जीवन का सुख पाने में सफल होता है | शास्त्रों के अनुसार स्वयं देवी ने भगवान शिव को पाने हेतु साधना की थी और उन्हें भगवान के साथ दांपत्य जीवन का सुख प्राप्त होता है. इसी प्रकार देवी की साधना भक्तों को भी प्राप्त होती है और माता के आशीर्वाद से शीघ्र विवाह के योग/ Marriage Yog फलित होते हैं.

ज्योतिष अनुसार शैल पुत्री पूजा से मिलने वाले लाभ

देवी शैल पुत्री पूजा से शांत होता है मंगल दोष

देवी शैल पुत्री पूजा से दूर होता है चंद्रमा से बनने वाला बालारिष्ट दोष

देवी शैल पुत्री का पूजन वैवाहिक जीवन को बनाता है सुखमय, मांगलिक दोष होते हैं शांत

देवी शैल पुत्री पूजा से मिलता है आर्थिक सुख समृद्धि का लाभ

देवी शैल पुत्री पूजा से शांत होता है क्रेमद्रूम दोष

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देवी शैल पुत्री प्रार्थना मंत्र, कवच एवं आरती

ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

प्रार्थना

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यान

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

पूणेन्दु निभाम् गौरी मूलाधार स्थिताम् प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥

प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।

कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

स्तोत्र

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।

सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं।

मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

कवच

ॐकारः में शिरः पातु मूलाधार निवासिनी।

हींकारः पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥

श्रींकार पातु वदने लावण्या महेश्वरी।

हुंकार पातु हृदयम् तारिणी शक्ति स्वघृत।

फट्कार पातु सर्वाङ्गे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥

आरती

शैलपुत्री माँ बैल असवार। करें देवता जय जय कार॥

शिव-शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने न जानी॥

पार्वती तू उमा कहलावें। जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें॥

रिद्धि सिद्धि प्रदान करे तू। दया करें धनवान करें तू॥

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने तेरी उतारी॥

उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो॥

घी का सुन्दर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के॥

श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें। प्रेम सहित फिर शीश झुकायें॥

जय गिरराज किशोरी अम्बे। शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे॥

मनोकामना पूर्ण कर दो। चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो॥

शैलपुत्री माँ बैल असवार। करें देवता जय जय कार॥

Source: https://www.vinaybajrangi.com/blog/festivas-in-hindi/devi-shailputri-ki-puja-se-shant-karen-kundli-ke-dosh

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